Wednesday 7 September 2011

होम्योपैथी की दवाइयों में आंतर संबंधो को समझाने वाला एक लेख. (An article explaining inter-relationship of homeopathic remedies.)

होम्योपैथी में दवाए एक दुसरे से सम्बन्ध रखती है. अर्थात एक दवा दूसरी दवा का अनुसरण करने वाली हो सकती है. या एक दवा दूसरी दवा को निरस्त्र करने वाली हो सकती है. दो दवाइया आपस में वैर भाव रखने वाली भी हो सकती है. ऐसा भी संभव है की दो दवाइया एक दुसरे की पूरक हो. और ऐसा भी की दो दवाइयों में कोई भी सम्बन्ध न हो.
हमने जब पहले कहा था की होम्योपैथी में दवाइयों का क्रम मायने रखता है तो इस बात को मद्देनजर रख कर कहा था.
एक बन्दा जो उच्च विद्या विभूषित है, जिसका कमाने की  ओर ध्यान कम है और कहता है की कमाने से अधिक इस बात की ओर ध्यान दे की हमने योगदान कितना किया इसका मूल्यांकन होना चाहिए. सो है तो सल्फर ही. उसे बवासीर की भी तकलीफ थी जिसमे उसे सल्फर और नैट्रिक एसिड ने अच्छा लाभ दिलाया. उसे हरदम एक मीठा मीठा सरदर्द भी चलते रहता है जिससे वह कोई काम लम्बे समय के लिए नहीं कर पाता है. लेकिन कब उसका दिमाग फिर जाए कुछ भरोसा नहीं सो उसमे नक्स वोमिका की झलक भी मिलती है. सर्दी में वह पैर में इतना दर्द महसूस करता है की पैर को जमीन पर रखते ही दर्द होता है और यदि वह ठंडी हवा में सर्दी के मौसम में रहे तो उसके पैर की उंगलियों में सुजन भी आ जाती है. इस तकलीफ में उसे सैलेशिया से राहत मिल जाती है.
एक बार उसने दूषित जल पी लिया. बाद में वह बहोत घबराने लगा. तब उसे आर्सेनिक एल्ब २०० और उसके बाद में सल्फर २०० देने से राहत मिली. जब आदमी खुद की चिंता करता है तो आर्सेनिक एल्ब से राहत मिलती है इस आधार पर उसे आर्सेनिक एल्ब दिया गया. फिर उसे कुछ कब्ज हुई जिसे सल्फर ने ठीक कर दिया. इसके पहले जब उसने ऐसा किया था तो उसे एंटीबायोटिक्स लेने पड़े थे और कुल मिला कर १००-१५० का खर्चा हुआ था.

इस बार बहाना ऐसा हुआ की उसने ३ साल पुराना गुड खा लिया. देखने से ऐसा लगता था की गुड के ऊपर फंगस जमी हुई है. कुछ दिनों के बाद उसे पतले दस्त हुए. दस्त तो पतले थे लेकिन पेट साफ़ नहीं हो रहा था. उसे कैल्क कार्ब २००  की कुछ खुराक दी गयी लेकिन लाभ नहीं हुआ. यहाँ कैल्क का प्रयोग इस आधार पर किया गया की उसपर सिलीशिया काम करती है और सल्फर के बाद कैल्क कार्ब अच्छा असर दिखाती है. उसका पेट थोडा भोजन खाने से ही भरी हो जाता. कुमारी आसव लेने से उसके पेट के भरी होने की समस्या ख़त्म हो गयी. फिर उसे एंटीमोनियम क्रड  २०० खिलाया गया. इसके लगभग एक हप्ते बाद उसे जमकर सर्दी हुई. उसने एक परिचित के यहाँ गरिष्ट भोजन किया. दुसरे दिन उसे बुखार आ गया. उसे नक्स वोमिका २०० और रहस टाक्स २०० अलट पलट कर दिया गया. लेकिन उसका बुखार कम नहीं हुआ. वह अंग्रेजी डाक्टर के पास गया जहा उसे एंटीबायोटिक और एंटीपायरेटिक दिया गया. उसकी प्यास एकदम ख़त्म हो चुकी थी इस आधार पर उसे लायको पोडियम २०० का एक डोज भी दिया गया. जिससे उसे बुखार में तो कुछ राहत मिली लेकिन उसे सर्दी में राहत नहीं मिली. गला भी दर्द हो रहा था और उसे निगलते वक़्त तकलीफ हो रही थी. उसे सिलीशिया २०० दिया गया और बाद में काली मुर ३० और नैटरम फोस ३० दिया गया. अब वह बेहतर महसूस कर रहा है.
उसकी प्यास एकदम ख़त्म हो चुकी थी इस आधार पर उसे बेलाडोंना  २०० का एक डोज भी दिया गया. इसका एक और आधार बनता था उसका सर गर्म होना और बाकि बदन ठंडा. उसके होठ पर एक फोड़ा बन गया है जो एंटीमोनिअम क्रड लेने के बाद उभरा. नक्स वोमिका के कारण फोड़े में तात्कालिक राहत तो मिली लेकिन वह फोड़ा अब भी बरकरार है. काली मुर का चयन कब्ज और इस फोड़े के आधार पर ही किया गया.
लेकिन पूरी बात को यदि देखे तो पता चलेगा की पुराना गुड खाने से और गरिष्ट भोजन करने से सब मुसीबतों को आमंत्रण मिला. इसलिए कहना चाहेंगे की पथ्य ही सर्वोत्तम दवा है.
दो दिन एंटी बायोटिक और एंटी पायरेटिक लेने के बाद भी उसे पूरी राहत नहीं मिली, और उसका पेट साफ़ तो हुआ ही नहीं जो सभी समस्याओ की जड़ था. चुकी उसने सडा हुआ गुड खाया था सो उसे आर्सेनिक एल्ब २०० दिया गया. होम्योपैथी में सल्फर के बारे में कहते है की वह ऐकुट बीमारी में अंत में प्रयोग से बीमारी को ख़त्म कर देता है. सो उसे रात में सल्फर २०० की एक खुराक दी गयी. दुसरे दिन उसे पेट साफ़ होने का अहसास हुआ.

1 comment:

  1. एक ७५ साल की महिला मेरे पास आई. उसे माहवारी में उसके रजो निवृत्ति के पहले अधिक रजोस्राव होता था. थोडा भी चलने से उसकी सास फूल जाती है. यह उसकी बहोत पुरानी शिकायत है. इन दो लक्षणों को देखते हुए मैंने उसे झट से कैल्क कार्ब २०० की ५ खुराक दी और उसे १२ - १२ घंटे के अंतर से लेने को कहा.
    उसने सात दिन के बाद आकर बताया की २ खुराक के बाद ही उसकी हालत में काफी गिरावट आ गयी. सो उसने दावा बंद कर दी. उसे चंद्रप्रभा वती भी दी गयी थी जो उसने यह कहकर वापिस लौटा दी की वह आयुर्वेदिक दवा नहीं खाएगी.
    उसने एक रोचक बात बताई की उसे बचपन में सफ़ेद दाग उभरे थे, जो सल्फर ३० या २०० खाने के बाद ठीक हो गए. मैंने उसे कहा की यदि सल्फर ने आपको राहत पहुचाई थी तो यह उम्मीद की जा सकती है की सल्फर अभी भी आपको राहत देगा. भलेही अभी आपको दूसरी समस्या ने जकड़ा है.
    कैल्क कार्ब के बाद सल्फर तुरंत नहीं दिया जाता है. सो मैंने उसे लायकोपोडियम २०० की एक खुराक दे दी और उसे दुसरे दिन से १२ घंटे के अंतर से सल्फर २०० की 3 खुराक लेने को कहा.
    जब वह एक हफ्ते बाद आई तो उसने बताया की उसे सास फूलने की तकलीफ में २५ % आराम है जो की उसके लिए बहोत बड़ी बात है.
    उसके चक्कर आने में कुछ अंतर नहीं आया है. उसे चक्कर के लिए ब्रायोनिया ३० की ४ खुराक दी गयी. उसे कहा गया की यदि सास में कुछ गड़बड़ हुई तो ब्रायोनिया के बाद सल्फर ले ले.
    यहाँ यदि सल्फर ने इसलिए काम किया है की वह कैल्क कार्ब से सम्बन्ध रखती है तो यह भी देखना रोचक होगा की कैल्क कार्ब को निरस्त्र करने वाली ब्रायोनिया अब क्या करेगी. चक्कर रोकेगी या कोई नया चक्कर खड़ा करेगी.

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